सो गुरुदेव हमारा है साधो l so gurudev hamara hai sadho

राग सोरठ

सो गुरुदेव हमारा है, साधो ॥ टेक ॥
जोग-अगनि मैं जो थिर राखैं, यह चित्त चंचल पारा है।।

करन-कुरंग खरे मदमाते, जप-तप खेत उजारा है।
संजम-डोर-जोर वश कीने, ऐसा जान-विचारा है।।१।। सो गुरु…॥

जा लक्ष्मीको सब जग चाहै, दास हुआ जग सारा है।
सो प्रभुके चरननकी चेरी, देखो अचरज भारा है।। २॥ सो गुरु…॥

लोभ-सरप के कहर जहर की, लहरि गई दुख टारा है।
‘भूधर’ ता रिखि का शिख हूजे, तब कछु होय सुधारा है।। ३ ।। सो गुरु…॥

अर्थ
हे साधक, हमारा गुरु तो वह हो है जो पारे के समान चंचल चित्त को भी योग की अग्नि में स्थिर रखता है। मदोन्मत्त (मद से उन्मत), इंद्रियरूपी चंचल हरिणों ने हमारे जप-तपरूपी खेत को उजाड़ दिया है। पर जिसने संयमरूपी डोर से बाँधकर उन्हें वश में किया है, ऐसा ज्ञान जिसे हुआ है, वह ज्ञानधारी ही हमारा गुरु है।

सारा जगत जिस लक्ष्मी को चाहता है, जिस लक्ष्मी का दास हुआ है, वह लक्ष्मी भी उस प्रभु के चरणों की दासी है, यह बड़ा आश्चर्य है!

लोभरूपी सर्प के विष की घातक लहरों के दुःखों को जिसने टाल दिया हैं, नाश कर दिया है ऐसे गुरु का शिष्य होने पर ही कुछ सुधार होना, कल्याण होना, उद्धार होना संभव है।

भूधर भजन सौरभ

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