सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी l Sahajanandi shuddh swarupi

सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी अविनाशी मैं आत्मस्वरूप ।
ज्ञानानन्दी पूर्ण निराकुल, सदा प्रकाशित मेरा रूप ॥टेक।

स्व-पर प्रकाशी ज्ञान हमारा, चिदानन्द घन प्राण हमारा।
स्वयं ज्योति सुखधाम हमारा, रहे अटल यह ध्यान हमारा ॥
देह मरे पर मैं नहिं मरता, अजर-अमर हूँ आत्म स्वरूप ।
सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी अविनाशी में आत्म स्वरूप ॥1।

देव हमारे श्री अरिहंत, गुरु हमारे निर्ग्रंथ सन्त ।
धर्म हमारा करुणावंत, करता सब भव-दुख का अन्त ॥
निज़ की शरणा लेकर हम भी प्रकट करें परमातमरूप । -
सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी अविनाशी मैं आत्म स्वरूप ।।2।।

सप्ततत्त्व का निर्णय कर लूं, स्व-पर भेद विज्ञान सु कर लूं।
निज स्वभाव पर दृष्टि धर लूं, राग-द्वेष सब ही परिहर लूं॥
बस अभेद में तन्मय होकर, भूलूँ सब ही भेदl
सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी अविनाशी मैं आत्म स्वरूप ।।3।।

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सहजानंद जी की रचना है न? Not sure.

Maybe,but the place where I found this, it was not mentioned.

मेरे पास एक पुस्तक है उससे मिलाकर शाम तक भेजता हूं।

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Is there an audio of this Bhakti?

होगी तो उपलब्ध कराई जाऐगी।