क्या साधन शेष रह गया? | Kya sadhan sheh rah gaya?

(दोहा)

यम नियम संयम आप कियो, पुनि त्याग विराग अथाग लियो।
वनवास रह्यो मुख मौन रह्यो, दृढ़ आसन पद्म लगाय दियो ।।1।।

मन पौन निरोध स्व बोध कियो, हठ जोग प्रयोग सुतार भयो।
जप भेद जपे तप त्योंहि तपे, उर से ही उदासि लही सब पे।

सब शास्त्रन के नय धारि हिये, मत मण्डन खण्डन भेद लिये।
वह साधन बार अनन्त कियो, तदपि कछु हाथ हजूं न पर्यो ।।3 ।।

अब क्यों न विचारत है मन से, कछु और रहा उन साधन से?
बिन सदगुरु कोउ न भेद लहें, मुख आगल है कह बात कहे ।।4।।

रचयिता:- श्रीमद् राजचन्द जी