कारज एक ब्रह्म ही सेती | Karaj ek brahm hi seti

कारज एक ब्रह्म ही सेती |
अंग संग नहिं बहिरभूत सब, धन दारा सामग्री तेती || टेक ||

सोल सुरग नव ग्रैवेयक में दुःख, सुखित सात में ततका वेति |
जा शिवकारन मुनिगन ध्यावैं, सो तेरे घट आनन्द खेती || १ ||

दान शील जप तप व्रत पूजा, अफल ज्ञान बिन किरिया केती |
पञ्च दरब तोतैं नित न्यारे, न्यारी राग-दोष विधि जेती || २ ||

तू अविनाशी जय परकासी, ‘द्यानत’ भासी सुकलावेती |
तजौ लाल ! मन के विकल्प सब, अनुभव मगन सुविधा एती || ३ ||

Artist- पं. द्यानतराय जी