कर रे ! कर रे ! कर रे ! तू आतम हित | Kar re! Kar re! Kar re! Tu Aatam Hit

कर रे ! कर रे ! कर रे ! तू आतम हित कर रे |
काल अनंत गयो जग भमतैं, भव भव के दुःख हर रे || टेक ||

लाख कोटि भव तपस्या करतैं, जीतो कर्म तेरी जर रे |
स्वास - उस्वास माहिं सो नासै, जब अनुभव चित धर रे || १ ||

काहे कष्ट सहै वन माहीं, राग - दोष परिहर रे |
काज होय समभाव बिना नहिं, भावो पचि - पचि मर रे || २ ||

लाख सीख की सीख एक यह, आतम-निज पर-पर रे |
कोटि ग्रन्थ को सार यही है, ‘घानत’ लख भव तर रे || ३ ||

Artist- पं. घानतराय जी

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