सारी पृथ्वी कागज बनाऊँ, समुद्र जल की स्याही लाऊँ।
सारे वनस्पति कलम बनाऊँ, तेरी महिमा लिख नही पाऊं।
अरे पूरा न होय बखान, प्रभुजी तेरा कैसे करूं गुणगान॥1॥
शक्ति का संग्रहालय तुझमें, गुण के भरे गोदाम तुझमें।
अनन्त गुण परिवार हमारा, अन्दर बहती अमृतधारा।।
सुख सन्तोष महान, प्रभु जी तेरा कैसे करूं गुणगान।।2।।
गोखुर में नहीं सिंधु समाये, वायसलोक अन्त नहीं पाये,
जो स्वरूप सर्वज्ञ ने देखा, शास्त्रों में क्या होगा लेखा।
अनुपम चीज महान, प्रभु जी तेरा कैसे करूं गुणगान।।3।।
(मेरे विचार से)
गाय के चलने से जो निशान बन जातें हैं पैरों से, उसे गोखुर कहते हैं, तो अर्थ बनेगा कि गांय के निशान में सिंह के निशान सम्मिलित नहीं हो सकते।
वायस कहतें हैं आकाश को, तो इसका अर्थ बनेगा कि आकाश का कोई अंत है नहीं।
और उसे अगली पंक्ति से जोड़ सकतें हैं; कि ऐसा ना जाने कितना विशाल और अनुपम स्वरूप केवली जानतें हैं कि शास्त्रों में वो कहा मिलेगा?