कहै राघौ सीता, चलतु गेह, नैननिमें आय रह्यो सनेह ॥ कहै. ।। हमऊपर तो तुम हो उदास, किन देखो सुतमुख चन्द्रमास ॥ १॥
लछमन भामण्डल हनू आय, सब विनती करि लगि रहे पाय ॥ २ ॥ ‘द्यानत’ कछु दिन घर करो बास, पीछें तप लीज्यो मोह नास ॥ ४॥
अर्थ: रघुपति रामचन्द्र सीताजी से कहते हैं कि अब घर चलो ! यह कहते समय उनके नेत्रों में सीताजी के प्रति अगाध प्रेम झलक रहा है।
तुम हमारी ओर तो उदास हो, हमसे रुष्ट हो। किन्तु चन्द्रमा के समान कान्तिवान अपने पुत्रों की ओर तो देखो ! उनका ख्याल करके ही घर चली चलो !
देखो ! लक्ष्मण, हनुमान और तुम्हारा भाई भामण्डल आदि सभी आकर तुम्हारे पाँव लगकर विनती करते हैं।
द्यानतराय जी कहते हैं कि राजा राम का अनुरोध है कि कुछ दिन घर में रहकर गृहस्थ का जीवन व्यतीत करो तत्पश्चात् मोह का नाश करने के लिए तप कर लेना।
रचयिता: पंडित श्री द्यानतराय जी
सोर्स: द्यानत भजन सौरभ