काल अचानक ही ले जायेगा, गाफिल होकर रहना क्या रे |
छिन हू तोकूं नाहिं बचावै, तौ सुभटन का रखना क्या रे || टेक ||
रंच सबाद करिन के काजै, नरकन में दुख भरना क्या रे |
कुलजन पथिकनि के हित काजै, जगत जाल में परना क्या रे || १ ||
इन्द्रादिक कोउ नाहिं बचैया, और लोक का शरना क्या रे |
निश्चय हुआ जगत में मरना, कष्ट परै तब डरना क्या रे || २ ||
अपना ध्यान करत खिर जावै, तौ करमनि का हरना क्या रे |
अब हित करि आरत तजि ‘बुधजन’, जन्म-जन्म में जरना क्या रे || ३ ||
Artist : कविवर पं. बुधजन जी