जो मंगल चार जगत | Jo Mangal Char

जो मंगल चार जगत में हैं, हम गीत उन्हीं के गाते हैं।
मंगलमय श्री जिन चरणों में हम सादर शीश झुकाते हैं ।।

जहाँ राग द्वेष की गंध नहीं, बस अपने से ही नाता है।
जहां दर्शन ज्ञान अनंत वीर्य, सुख का सागर लहराता है।।
जो दोष अठारह रहित हुए, हम मस्तक उन्हें नवाते हैं ।। मंगलमय...।।(1)

जो द्रव्य भाव नोकर्म शून्य, नित सिद्धालय के वासी हैं।
आतम को प्रतिबिंबित करते, जो अजर अमर अविनाशी हैं।।
जो हम सबके आदर्श सदा, हम उनको ही नित ध्याते हैं ।।मंगलमय...।।(2)

जो परम दिगम्बर वनवासी, गुरु रत्नत्रय के धारी हैं।
आरम्भ परिग्रह के त्यागी, जो निज चैतन्य विहारी हैं।।
चलते-फिरते सिद्धों से गुरु, चरणों में शीश झुकाते हैं ।।मंगलमय...।।(3)

प्राणों से प्यारा धर्म हमें, केवली भगवान का कहा हुआ।
चैतन्यराज की महिमामय, यह वीतराग रस भर हुआ।।
इसको धारण करने वाले, भवसागर से तीर जाते हैं ।।मंगलमय...।।(4)

Artist - अज्ञात

Singer: Atmarthi @Pranjal

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