जिस गति में जिधर भी गयी आतमा
उस गति में मिला कोई अपना नहीं
दुर्गति मिल रही और कड़ी वेदना
फिर भी संसार दुःख से निकलना नहीं ॥
हाय जीवन ये कैसी बड़ी भूल है ।
जैसे होते चमन के खिले फूल में ।
खिल के मुरझा गया फिर मिला धूल में।
जिस तरह फूल को घुल में ले लिया ॥१॥
अब तो आँखें भी बूझ-बूझ के जलने लगी।
अब तो साँसें भी रुक-रुक के चलने लगी।
कटके जीवन की डोरी सिमटने लगी।
तेरा पुद्गल ये चेतन चला आतमा।
इस संसार में अब भटकना नहीं ॥२॥