जिनवर की वाणी से | Jinvar ki vani se

जिनवर की वाणी से, हमने ये जाना।
सबसे सरल है निजपद का पाना॥ टेक॥
निज परिणति निज में ही रम गई, निज स्वरूप पहचाना।।

सोये थे अनादि से हम, मोह की गहल में,
वीर की वाणी से आये, चेतना महल में।
आज समझ में आया जग है बेगाना।।सबसे सरल है॥(1)

अपनी निधि को भूल गया था, मैं दुःखी संसारी,
प्रभु से पदारथ माँगे, भक्त बन भिखारी।
भोगों के भक्त तेरा कहां है ठिकाना।।सबसे सरल है॥(2)

गुरुओं ने बताया मारग सीधा और सहज है,
मेरी परिणति फिर होती क्यों असहज है।
इसी रास्ते से होगा शिवपुर जाना।।सबसे सरल है।।(3)

2 Likes