*-जिनवाणी स्तुति-*
हे मात! तुव अभ्यास से ,
नित ज्ञान का सिंधु बहे।
बोध हो निज-तत्त्व का,
तब मोह-अरि क्षण में भगे।।टेक।।
त्रिजगपति-सर्वांग से,
जो रत्नमय-वाणी खिरी।
करुणामयी ज्ञानी-मुनि,
उसके बनाते पारखी।।1।।
हे मात! तुव अभ्यास से…
अनुयोग चारों के घनों से,
वीतरागता बह रही।
भाजन भरें आतम-रसिक,
नित सरल-हृदय जीव ही।।2।।
हे मात! तुव अभ्यास से…
मम चित्त में उकरी रहे,
अमृतमयी यह देशना।
हो पैठ ‘ज्ञाता’ रूप में,
चौरासी के धरूँ वेश ना ।।3।।
हे मात! तुव अभ्यास से,
नित ज्ञान का सिंधु बहे।
बोध हो निज-तत्त्व का ,
तब मोह-अरि क्षण में भगे।।
ज्ञाता सिंघई
(सिवनी)
25/8/16