जिनवाणी का कहना है | Jinvani Ka Kehna Hai

जिनवाणी का कहना है, आतम सुख का झरना है।
शाश्वत आनन्द पाना है, तो अंतर्दृष्टि करना है। टेक॥

शुद्ध नहीं हो पाया तो तू, सिद्धों की भक्ति करता चल -2,
राग करे या द्वेष कोई, समता रस को पीता चल, ।
समता रस को पता चल ।
तेरा सुख तो तुझमें है बस, इतना निश्चय करना है॥1॥

दृष्टि स्वसन्मुख कर चेतन, स्वानुभव का उद्यम कर -2,
स्वातम की ही महिमा लाकर, निज का ही सम्वेदन कर,
निज का ही सम्वेदन कर।
निश्चय से सब अशरण हैं, शुद्धतम ही शरणा है॥2॥

कोई नहीं जग में अपना, इक आत्म तत्व ही अपना है -2,
परज्ञेयों से दृष्टि हटा कर, आतम आतम रटना है,
आतम आतम रटना है।
कर्मोदय में डरना नहीं बस, भावों की शुद्धि रखना है॥3॥