जिनरूप प्रत्यक्ष दिखाय रहो रे | Jinrup pratyaksh dikhaye rhyo re

(तर्ज - रंगमा रंगमा रंगमा रे…)

जिनरूप प्रत्यक्ष दिखाय रहो रे।
आनन्द उर न समाय रहो रे ।टेक ।।

समवशरण सम हैं जिन मंदिर।
जिन सम जिन प्रतिमा अति सुंदर।।
शान्त स्वरूप दिखाय रहो रे।।1।।

आयुध अम्बर नारि नहीं हैं।
नग्न दिगम्बर रूप सही है।।
बिन श्रृंगार सुहाय रहो रे ।2।।

अचलासन शुभ नासादृष्टि।
धर्मामृत की करती वृष्टि।।
भव्य समूह नहाय रहो रे ।।3।।

वीतराग सर्वज्ञ हितंकर।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हीं शिव शंकर ।।
जय जयकार गुंजाय रहो रे।4।।

धन्य हुए हैं तृप्त हुए हैं।
भाव हमारे शुद्ध हुए हैं ।।।
रत्नत्रय प्रगटाय रहो रे।।5।।

भक्ति भाव से शीस नवावें।
प्रभुवर तत्त्व भावना भावें।।
ज्ञान में ज्ञान जनाय रहो रे।6।।

Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी आत्मन्

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