जिनराज चरन मन मति बिसरै । Jinraj charan Man Mati Bisre

जिनराज चरन मन मति बिसरै

(राग नट)

जिनराज चरन मन मति बिसरै ।।टेक ।।
को जानैं किहिंवार कालकी, धार अचानक आनि परै ।।
देखत दुख भजि जाहिं दशौं दिश पूजन पातकपुंज गिरै ।
इस संसार क्षारसागरसौं, और न कोई पार करै ।।१ ।।
इक चित ध्यावत वांछित पावत, आवत मंगल विघन टरै ।
मोहनि धूलि परी माँथे चिर, सिर नावत ततकाल झरै ।।२ ।।
तबलौं भजन संवार सयानैं, जबलौं कफ नहिं कंठ अरै ।
अगनि प्रवेश भयो घर `भूधर’, खोदत कूप न काज सरै ।।३ ।।

रचयिता: कविवर श्री भूधरदास जी

Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )