जिनप्रतिमा प्रक्षाल पाठ | Jinpratima Prakshal Path

(दोहा)

धन्य दिवस है आज का, धन्य घड़ी है आज।
करें प्रभो प्रक्षाल हम, भाव विशुद्धि काज ॥१॥

(तर्ज तुम्हारे दर्श बिन स्वामी)

परम पावन अहो जिनवर, जगत की कलुषता हरते।
स्वयं रागादि मल हरने, प्रभो ! प्रक्षाल हम करते ॥ २ ॥

स्वयं की साधना करके, त्रिजग की पूज्यता पाई।
पूज्यता स्वयं की लखकर, प्रभो पूजा सहज करते ॥३॥

निहारें शान्त मुद्रा जब, नेत्र पावन सहज होते।
हाथ होते सहज पावन, चरण-स्पर्श जब करते ॥४॥

करें गुणगान भक्ति से, होय रसना तभी पावन।
सहज ही चित्त हो पावन, प्रभु का ध्यान जब धरते ॥५॥

जन्म कल्याण में स्वामी, किया अभिषेक इन्द्रों ने।
लगाया माथा सु गंधोदक, शीश जय-जय ध्वनि करते ॥६॥
किन्तु स्नान ही त्यागा, धरी निर्ग्रंथ दीक्षा जब।
ध्यान धारा सहज वर्ते, प्रभु सब कर्म मल हरते ॥७॥

पूर्ण निर्दोष निर्मल हो, तीर्थ प्रभु आप प्रगटाया।
बहायी ज्ञानमय गंगा, भव्य स्नान शुभ करते ॥८॥

अहो कैसा समय होगा, याद कर हर्ष उमगाता।
महा आनंद से हम भी, अर्चना नाथ की करते ॥९॥

धन्य जिनबिम्ब है जग में, अहो चिद्-बिम्ब दर्शाते।
नीर प्रासुक ही लेकर हम, प्रभो प्रक्षाल शुभ करते ॥१०॥

यत्न से करते परिमार्जन, प्रभो रोमांच तन में हो।
आत्मप्रभुता दिखाती है, अर्घ्य चरणों में जब धरते ॥११॥

संजोए भावना स्वामी, होंय हम भी प्रभु के सम।
लगावें शीश गंधोदक, अहो जिन-रूप उर धरते ॥ १२ ॥

(दोहा)

लोकोत्तम मंगलमयी, अनन्य शरण जिननाथ।
प्रभु चरणों में शीश धर, हम भी हुए सनाथ ॥१३॥

रचयिता:- ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’