जिन गुण गाओ हर्षाओ, जय जय से नभ गुंजाओ।
धर्म महोत्सव सुखकारी, अविकारी मंगलकारी । टेक।।
सुख शांति तो आत्म ज्ञान से ही मिलती।
ज्ञान कला भी निज अन्तर में ही खिलती।।
अवसर आया सहजहिं पाया, जिनवर धर्म सु हितकारी।।1।।
तत्त्व प्रयोजनभूत आत्मन् पहिचानो।
भेदज्ञान कर स्वानुभूति उद्यम ठानो ।।
छोड़ राग रुष हो अन्तर्मुख, पाओ निधि आनंदकारी।2।।
धर्मी तो निज शुद्धतम भगवान है ।
ज्ञानमूर्ति निर्दोष परमसुख धाम है ।।
निज की श्रद्धा अनुभव थिरता, धर्म सर्व संकटहारी।।3।।
अटक न जाना शुष्क ज्ञान अलापों में।
भटक न जाना फँसकर क्रियाकलापों में।।
शरण एक ही ध्येय एक ही निज ज्ञायक प्रभु अविकारी।4।।
Artist - ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’