जिन दर्शन की महिमा स्तुति | Jin Darshan ki Mahima Stuti

जिन-दर्शन की महिमा)

धन्य-धन्य हे जिनवर स्वामी! अजब आपका सौम्य स्वरूप।
इसके अवलोकन से मुझमें, दिखे मुझे मेरा चिद्रूप ॥

वस्त्राभूषण नहीं देह पर, वीतराग छवि शान्त अहो।
लेश मात्र भी नहीं परिग्रह, जग से नित्य अलिप्त रहो ॥

नहिं आयुध, शृंगार नहीं कुछ, अचलित नासादृष्टि अनूप।
परम दिगंबर मुद्रा मनहर, निजानन्दमय शान्त स्वरूप ॥

जिन-प्रतिमा की परम शान्त छवि, अंतर्मन को भाती है।
दर्शन करने से परिणति में, अति निर्मलता आती है ॥

बिन बोले ही प्रतिमा देखो! मोक्षमार्ग समझाती है।
सतत दिव्यध्वनि खिरती रहती, भव्यों को सुन पड़ती है ॥

जिन-प्रतिमा जिनवर सी ही है, जिनवर सा मेरा आतम।
ऐसी दृढ़ श्रद्धा करने से, पामर बनता परमातम ॥

हर्षित होकर भक्ति भाव से, इकटक दर्शन करने से।
शुद्धातम रुचि जग जाती है, यह जिनबिम्ब निरखने से ॥

मोह-नींद तज जगती परिणति, जो अबतक बेसुध सोती।
बंध-मार्ग से विमुख होयकर, मोक्षमार्ग सन्मुख होती ॥

फिर वह परिणति अंतर्मुख हो, ध्रुव को ही अविरल ध्याती।
ध्रुव में ही परिपूर्ण मगन हो, परमातम पद को पाती ॥

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