-
गृह जिनमंदिर के समीप बनायें। पड़ोसी अच्छे आचार-विचार वाले हों। बाजार, बैंक, विद्यालय आदि भी समीप ही देखें।
-
पर्याप्त कमरें हों। एक कमरा ऐसा भी बनायें जिसमें लैट-बाथ, रास्ता, खुली छत अलग से हो, जहाँ कोई साधर्मी रुक सके। उसकी एवं घर की मर्यादा बनी रहे।
-
रसोई में पर्याप्त स्थान हो, स्वाभाविक प्रकाश हो, जहाँ बनाने एवं भोजन करने का पृथक-पृथक एवं जुड़ा हुआ स्थान हो; जिसमें त्यागी भी भोजन कर सकें । उनको भोजन बनता हुआ भी दिखता रहे । प्रातः एवं सायं दोनों समय सूर्य का प्रकाश आता रहे, ऐसी खिड़की या छत में जाल बनायें।
-
रसोई के समीप शौचालय कदापि न बनायें।
-
स्नानागार में गीजर या फुब्बारा न लगायें।
-
एक कक्ष स्वाध्यायादि के लिए अलग से बनायें, जिससे जिनवाणी की विनय, भावों की विशुद्धता एवं मर्यादा बनी रहे।
-
प्रदर्शन की भावना से अतिरिक्त साज सज्जा, विद्युत-बल्ब, पंखादि न लगायें।
-
गहरे रंग की पुताई, डिजायनदार फर्श, खिड़की, रेलिंग आदि न लगायें।
-
छत पर बाउण्ड्री पर्याप्त ऊँची, छोटी जाली या झरोखों सहित बनायें जिससे आड़ भी रहे और हवा भी रहे।
-
सुरक्षा, सुविधा, एवं स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। कमरों में आवश्यक अलमारी, टांड, रैक भी लगावें, जिससे सामान रखने में सुविधा रहे।