जीवन पथ दर्शन - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Jeevan Path Darshan


42. गृह निर्माण निर्देश

  1. गृह जिनमंदिर के समीप बनायें। पड़ोसी अच्छे आचार-विचार वाले हों। बाजार, बैंक, विद्यालय आदि भी समीप ही देखें।

  2. पर्याप्त कमरें हों। एक कमरा ऐसा भी बनायें जिसमें लैट-बाथ, रास्ता, खुली छत अलग से हो, जहाँ कोई साधर्मी रुक सके। उसकी एवं घर की मर्यादा बनी रहे।

  3. रसोई में पर्याप्त स्थान हो, स्वाभाविक प्रकाश हो, जहाँ बनाने एवं भोजन करने का पृथक-पृथक एवं जुड़ा हुआ स्थान हो; जिसमें त्यागी भी भोजन कर सकें । उनको भोजन बनता हुआ भी दिखता रहे । प्रातः एवं सायं दोनों समय सूर्य का प्रकाश आता रहे, ऐसी खिड़की या छत में जाल बनायें।

  4. रसोई के समीप शौचालय कदापि न बनायें।

  5. स्नानागार में गीजर या फुब्बारा न लगायें।

  6. एक कक्ष स्वाध्यायादि के लिए अलग से बनायें, जिससे जिनवाणी की विनय, भावों की विशुद्धता एवं मर्यादा बनी रहे।

  7. प्रदर्शन की भावना से अतिरिक्त साज सज्जा, विद्युत-बल्ब, पंखादि न लगायें।

  8. गहरे रंग की पुताई, डिजायनदार फर्श, खिड़की, रेलिंग आदि न लगायें।

  9. छत पर बाउण्ड्री पर्याप्त ऊँची, छोटी जाली या झरोखों सहित बनायें जिससे आड़ भी रहे और हवा भी रहे।

  10. सुरक्षा, सुविधा, एवं स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। कमरों में आवश्यक अलमारी, टांड, रैक भी लगावें, जिससे सामान रखने में सुविधा रहे।

(table of contents)

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