27. ट्रस्ट, समिति, संस्थान निर्देश
-
मोहवश अयोग्य परिवारी एवं रिश्तेदारों को सदस्य न बनाया जाये।
-
स्वाध्याय से जुड़े सक्रिय, विवेकी एवं गम्भीर कर्तव्यनिष्ठ साधर्मीजनों को निष्पक्ष रूप से प्रमुखता दें।
-
सदस्यों के स्थान अधिक समय रिक्त न रखें।
-
मीटिगें नियमानुसार समय-समय पर अवश्य होती रहें।
-
आध्यात्मिक संगोष्ठी, तत्त्वज्ञान प्रसार की प्रमुखता रहे।
-
कुरूढ़ि एवं व्यसनमुक्ति अभियान, नैतिक शिक्षा, चिकित्सा, योग-प्राणायाम आदि शिविर भी अवश्य लगायें ।
-
शिकायत की प्रवृत्ति छोड़कर, सहयोगात्मक एवं रचनात्मक विचार एवं वृत्ति बनाएँ।
-
वचन एवं व्यवस्था की प्रामाणिकता रखें।
-
जो राशि जिस कार्य हेतु आए, उसे यथासम्भव उसी कार्य में लगायें। परिवर्तन की स्थिति में दातार की स्वीकृति अवश्य लें। कार्य हो जाने पर भी दातार को सूचित करें ।
-
योग्य व्यक्तियों को तैयार करते जायें । भिन्न कार्यों हेतु प्रभारी एवं समितियां बनाकर, प्रशासन का विकेन्द्रीकरण करते जायें। पहले से जुड़े सक्रिय तत्त्वरुचि वाले लोगों को रिक्त स्थान की पूर्ति करते समय प्राथमिकता दें।
-
धन के लोभ से नये लोगों का शीघ्रता से अति विश्वास न करें। पद योग्य व्यक्ति का निर्णय, विवेक पूर्वक वर्तन के बाद ही करें।
(table of contents)