१२. छह द्रव्य
जीव द्रव्य हैं अनंत, पुद्गल अनंतानंत ।
धर्म अधर्म आकाश एक - एक जानो ।।1।।
कहे जिन आगम में समझो सुयुक्ति से ।
काल द्रव्य असंख्यात लोक प्रमाण मानो ।।2।।
विश्व है इन्हीं छह द्रव्यों का मेला ।
चेतना स्वरूप जीव सदा है अकेला ।।3।।
सदा है अकेला किन्तु नहीं अधूरा ।
प्रभु है स्वभाव से ही सदा काल पूरा ।।4।।
रचयिता-: बा.ब्र.श्री रवींद्र जी ‘आत्मन्’