जे दिन तुम, विवेक बिन खोये ॥टेक॥
मोह वारुणी पी अनादि तें, पर पद में चिर सोये ।
सुख करंड चित् पिण्ड आप पद, गुण अनन्त नहीं जोये ।।
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥१॥
होय बहिर्मुख अनि राग रुष, कर्म बीज बहु बोये ।
तसु फल सुख दुःख सामिग्री लखि, चित्त में हरसे रोये ।।
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥२॥
धवल ध्यान शुचि सलिल पूर तें, आस्रव मल नहिं घोये ।
पर द्रव्यनि की चाह न रोकी, विविध परिग्रह ढोये ।।
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥३॥
अब निज में निज जान, नियत तहाँ, निज परिणाम समोये ।
यह शिव मारग, सम रस सागर, ‘भागचन्द’ हित तो ये ।।
जे दिन तुम विवेक बिन खोये ॥४॥
रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन
Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )