(तर्ज : मैया त्रिशला तेरो …)
जय जय वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, आप्त हमारा है।
जय जय वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, नाथ हमारा है ।।टेक।।
रागादिक दोषों से न्यारा, कर्मबन्ध जिसने निरवारा।
अनंत चतुष्टय रूप सर्व का, मंगलकारा है।।1।।
ज्ञान अपेक्षा सब में व्यापक, किन्तु न होता पर में व्यापक।
परम शुद्ध विष्णु सब जग का, जाननहारा है।।2।।
मोक्षमार्ग का परम विधाता, चतुरानन ब्रह्मा विख्याता।।
दिव्यध्वनि से जिसने, सम्यक तत्त्व उचारा है ।।3।।
परमशांत मुद्रा अविकारी, दर्शन सबको आनन्दकारी।
परम शान्ति का निमित्तभूत, शंकर अति प्यारा है ।।4।।
इन्द्रादिक चरणों में नमते, सहस्त्र नाम से स्तुति करते।
गुण अनन्तमय प्रभु का यश,तिहुं जग विस्तारा है ।।5।।
पक्षपात को छोड़ विचारा, हम निज अंतर मांहि निहारा।
प्रभु समान ही शाश्वत ज्ञाता, रूप हमारा है ।।6।।
प्रभु चरणों में शीश नवावें, आराधन में भाव लगावें।
निश्चय ही पावें हम भी, भव सिन्धु किनारा है ।।7।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’