अर्थ : हे प्रभु! मैं आपकी शरण को छोड़कर अन्यत्र कहाँ जाऊँ? मैं अब तक आपकी शरण में नहीं आया– अनादि काल से मेरी यह ही चूक/गलती रही है। हे करुणागुण के धारक! इसके लिए मुझे क्षमा करो।
मैं भव-सागर में/संसार में डूब रहा हूँ, आपके अतिरिक्त कौन है जो मुझे इससे बाहर निकल सके।
आपके समान अन्य कोई देव नहीं है, जिसके आगे हम हाथ पसारकर याचना कर सकें।
आपने मेरे समान अनेक पापियों को पार उतार दिया है, गुरु और शास्त्र इसका वर्णन करते हैं।
दौलत राम जी कहते हैं कि मुझे भी अब भव से/संसार से/जन्म-मरण की भटकन से पार लगाइए, मुक्त कीजिए। मैं अब आपकी शरण में आया हूँ- आ गया हूँ।