जैनधर्म का प्यारा बच्चा, जिनवाणी नित पढ़ता है।
अवगुण उसके घटते जाते, गुण श्रेणी में चढ़ता है॥
प्रातः जब बिस्तर से उठता, परमेष्ठी को ध्याता है।
माँ जिनवाणी के चरणों में, अपना शीश झुकाता है ।।जैन… ॥१॥
हर धड़कन में बसी अहिंसा, हिंसा से तो डरता है।
जिनमंदिर के दर्शन पूजन, नित्य नियम से करता है। जैन… ॥२॥
दश धर्मों की पूजा करता, सोलह कारण ध्याता है।
तीर्थंकर पद की महिमा को, जिनवाणी में गाता है।जैन…॥३॥