जहाँ राग-द्वेष की गंध नहीं | jaha rag dwesh ki gandh nhi

जहाँ राग-द्वेष की गंध नहीं, बस सुख अनुपम ही मिले।
मुक्ति है नगर, सिद्धों का है घर, चलो सिद्धों की छाँव तले ।।टेक॥

गुणरूपी जहाँ चमके तारे, और चाँद हो समकित का,
अंतर वीणा प्रतिक्षण गाती, आतम के गीत सदा ।।
चैतन्यमयी इस उपवन में, हम मुक्तिवधू से मिले ॥१॥ मुक्ति है नगर…

जहाँ सुखमयी अम्बर पर, उड़ती है ज्ञान पतंग।
ध्रुव दृष्टि डोर से बंधी हुई, अविचल स्थिर है उतंग ॥
ये देख नजारे अनुपम से भविजन मन कमल खिले ॥२॥ मुक्ति है नगर…

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