जगत जन जूवा हारि चले |
काम कुटिल संग बाजी मांड़ी, उन करि कपट छले || टेक ||
चार कषायमयी जहं चौपरि, पांसे जोग रले |
इत सरवस उत कामिनी कौड़ी, इह विधि झटक चले || १ ||
कूर खिलार विचार न कीन्हों, ह्वै है ख्वार भले |
बिना विवेक मनोरथ काके, ‘भूधर’ सफल फले || २ ||
Artist : कविवर पं. भूधरदास जी