जाग रे चेतन तू तो | Jag re chetan tu to

जाग रे चेतन तू तो भगवान आत्मा
नित्य निरंजन तू तो शाश्वत परमात्मा।

कर्मादि से भिन्न, रागादि से शून्य ।
निरपेक्ष ज्ञायक है सहज शुद्धात्मा ।

आदि मध्य अन्त मुक्त, स्वयं पूर्ण सहज मुक्त ।
दर्शनीय ध्येय परम, ज्ञेय रूप आत्मा ।। टेक ।।

तू प्रभु शोभे नहीं, तुझको यह दीनता ।
अपने मग्न रहो, होके परमात्मा ।। टेक ।।

आदि अंत मुक्त तूं ही,आनंद से युक्त तू ही ।
श्रद्धेय ध्येय तू ही शाश्वत शुद्धात्मा ।।

प्रभुता से मंडित तुझको शोभे नहीं दीनता।
तेरे तो गीत गावें केवलि परमात्मा ।

अर्हन्त सिद्ध साहू किसकी अवस्थायें ।
वही तो आतम तू ही कारण परमात्मा।।

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