इसी लिए प्रभु रख लिए तुमने हाथों पे हाथ | Isiliye Prabhu Rakh liye tumne hathon pr hath

कोई ना दे सकता है इस जग में किसी का साथ।
इसी लिए प्रभु रख लिए तुमने हाथों पे हाथ।।टेक।।
तुमने बतलाया प्रभुवर हर जीव स्वयं का नाथ।
इसीलिए प्रभु …।।

वीतराग भावों से जिनवर तुमने जगत निहारा है।
अंतर में अपने चैतन्य प्रभु का लिया सहारा है।।
हो धन्य आप हे जिनवर, छोड़े सब पुण्य अरु पाप।।
इसीलिए प्रभु रख लिए…।।१।।

सुना है शरणागत भव्यों को मुक्ति मार्ग दिखलाते हो।
अकर्तृत्व ज्ञायक स्वभाव की निर्मल दृष्टि कराते हो।।
निज की मुक्ति का निज में ही होता है पुरुषार्थ
इसीलिए प्रभु रख लिए…।।२।।

आराधक के जीवन में शुभभाव सहज ही आता है।
बचूं शुभाशुभ भावों से बस यही भावना भाता है।।
हूं स्वयं पूर्ण अपने में , बस एक यही परमार्थ।।
इसीलिए प्रभु रख लिए…।।३।।

विषयों की अभिलाषा ले जो शरण आपकी आते हैं।
वीतराग मुद्रा लख कर वो निर्वांछक हो जाते हैं।।
भिक्षा लेने आते हैं और दीक्षा लेके जाते हैं।
अपनी प्रभुता अपने में प्रगटे अपने आप।।
इसीलिए प्रभु रख लिए…।।४।।

Artist: पंडित संजीव जी उस्मानपुर

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