हम लाए हैं विदेह से तत्त्वों के ज्ञान को।
जिनवाणी को रखना अरे भव्यों सम्हाल के।।
मक्खन ही परोसा छाछ को निकाल के।
जिनवाणी को रखना अरे भव्यों सम्हाल के।। टेक ।।
देखो ये ग्रंथराज है चिंतामणि जैसा ।
आचार्य कुन्दकुन्द ने निज हाथ में लिखा ।।
भगवान आत्मा कह जगाया जहान को।
जिनवाणी को रखना अरे भव्यों सम्हाल के ।।१।।
दुनियाँ में जैनधर्म का न्यारा है वास्ता ।
पुद्गल का जीव से नहीं, है कोई वास्ता ।।
भूलो नहीं समझो ज्ञेय ज्ञायक स्वभाव को ।।
जिनवाणी को रखना अरे भव्यों सम्हाल के ।।२।।