हम बैठे अपनी मौन सौं।।टेक।।
दिन दस के मेहमान जगत जन, बोलि बिगारै कौन सौं।।१।।
गये विलाय भरम के बादर, परमारथ-पथ-पौन सौं।
अब अन्तर गति भई हमारी, परचे राधा रौन सौं।।२।।
प्रगटी सुधापान की महिमा, मन नहिं लागै बौन सौं।
छिन न सुहाय और रस फीके, रुचि साहिब के लौन सौं।।३।।
रहे अघाय पाय सुख संपति, को निकसै निज भौन सौं।
सहज भाव सद्गुरु की संगति, सुरझै आवागौन सौं।।४।।