हुआ सबेरा अब उठ जाओ। Hua Savera Ab Uth Jao

हुआ सबेरा अब उठ जाओ,
पंच प्रभु का ध्यान लगाओ ॥ टेक ॥।

तत्त्वों का चिन्तन भी करना,
भेदज्ञान हृदय में धरना ।
लक्ष्य सु जीवन का दोहराओ ।। हुआ. ।। 1 ।।

निज दोषों की निंदा करना,
दृढ़ संकल्प पूर्वक तजना ।
निर्मल निज परिणाम बनाओ ।। हुआ. ।। 2 ।।

कर्मबन्ध भावों से होता,
अरे आलसी जीवन खोता ।
मोहादिक दुर्भाव नशाओ ।। हुआ. ।। 3 ।।

अन्य न कोई सुख-दुख दाता,
व्यर्थ मूढ़ भव में भरमाता ।
निज में ही उपयोग लगाओ ।। हुआ. ।। 4 ।।

पर से कुछ भी नहीं सम्बन्ध,
शुद्धातम है सदा अबन्ध ।
आतम अनुभव अब प्रगटाओ ।। हुआ. ।। 5 ।।

रखना मन में नहीं कामना,
भाना नित वैराग्य भावना ।
शुद्धातम में ही रम जाओ ।। हुआ. ।। 6 ।।

आतम ही परमातम समझो,
व्यर्थ विकल्पों में मत उलझो ।
खुद ही परमातम बन जाओ ।। हुआ. ।। 7 ।।

पुस्तक का नाम:" प्रेरणा "
पाठ क्रमांक: ०२
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’