हे वीतरागी ! वीर प्रभु | Hey veetragi veer prabhu

जिनेन्द्र वन्दना

हे वीतरागी! वीर प्रभु, सम्यक्त्व निधि से पूर हो।
हो कर्म-दल के दलनकर्ता, सिद्धपुर के शूर हो ।।

शुद्धात्मा को साधकर, सर्वज्ञ पद को पा लिया।
मद मोह मिथ्याज्ञान तजकर, ज्ञान कमल खिला लिया।।

सब आत्मा भगवान हैं, यह दिव्यध्वनि का सार है।
है सार बस शुद्धात्मा, संसार सब निःसार है ।।

सबका परम कल्याण हो, दुःख दर्द का अवसान हो।
है भावना उत्तम यही, बस ‘ज्ञान’ का साम्राज्य हो।।

रचयिता:- पं. ज्ञानचंद जी, विदिशा

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