(तर्ज-श्री सिद्धचक्र का पाठ करो…)
हे वीतराग भगवान, सहज गुणखान
परम उपकारी, कैसे थुति करें तुम्हारी। टेक।।
हे दर्शन-ज्ञान अनंत विभो, सुख वीरज का नहीं पार अहो।
हे सुगुण अनन्तानंत दिव्य अविकारी। कैसे. ।।1।।
रागादि विभाव न लेश रहें, सब कर्म बन्ध नि:शेष भये।
अक्षय अनंत प्रभुता प्रगटी सुखकारी। कैसे. ।।2।।
भक्ति पूजा से हर्ष न हो, निंदा से किंचित् रोष न हो।
समवृत्ति सातिशय परमानद दातारी। कैसे. ।।3।।
अन्तर की प्रभुता दर्शायी, अनुभव की विधि भी सिखलायी।
निर्ग्रन्थ मार्ग दर्शाया जग हितकारी। कैसे.।।4।।
Artist - ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’