हे वीरनाथ! तुम दर्शन कर, निज दर्शन करने आये हैं।
हम वीरनाथ की भक्ति कर, वैराग्य बढ़ाने आये हैं।।
तुमको बिन जाने हे स्वामी, भव-भव में व्यर्थ भ्रमाते थे।
सुख की आशा से विषयों में, फंसकर दुख ही दुख पाते थे।।
अब तुम साक्षी में हे जिनवर ! शिवमारग पाने आये हैं।।(1)
जब ही देखा जिनरूप अहो, विश्वास सहज ही जागा है।
आतम सुखमय सुख का कारण, दुर्मोह सहज ही भागा है।।
प्रभु सहज प्राप्य की प्राप्ति का, पुरुषार्थ जगाने आये हैं।।(2)
घबराया चित्त प्रपंचों से, अब भोग रोग सम लगते हैं।
इनमें फँसकर मोही प्राणी, नित स्वयं स्वयं को ठगते हैं।।
निवृत्तिमय निर्ग्रन्थ दशा, तुम सम प्रगटाने आये हैं ।।(3)
निरपेक्ष रहें सब जग भर से, निर्द्वन्द स्वयं में लीन रहें।
निज वैभव में सन्तुष्ट रहें, निज प्रभुता में लवलीन रहें ।।
प्रभु परमज्योतिमय परमानन्दमय, निजपद पाने आये हैं ।।(4)
अन्तर में परमातम देखा, अन्तर में मारग पाया है।
अन्तर दृष्टि अब प्रगट हुई, आनन्द न हृदय समाया है।
मन शान्त हुआ निष्काम भाव से, शीश झुका हर्षाये हैं।।(5)
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Singer: @Asmita_Jain