हे नर निपट गंवार, गरव नहिं कीजै रे || टेक ||
झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीजे रे |
कै छिन सांझ सुहागुरु जोबन, कै दिन जग में जीजै रे || १ ||
बेगा चेत विलम्ब तजो नर, बंध बढ़ै थिति छीजै रे |
‘भूधर’ पलपल हो है भारो, ज्यों-ज्यों कमरी भीजैं रे || २ ||
Artist : कविवर पं. भूधरदास जी