हथनापुर बंदन जइये हो। Hathnapur vandan Jaiye ho

हथनापुर बंदन जइये हो ॥ टेक ॥
शान्ति कुंथु अर मल्ल विराजैं, पूजा करि सुख पइये हो ॥
हथनापुर बंदन जइये हो ॥ १ ॥

श्रेयँसकुमर भयो दानेश्वर, सो दिन अब लौं गइये हो ।
हथनापुर बंदन जइये हो॥ २ ॥

‘द्यानत’ बन्दों थानक नामी, स्वामीकी लौं लइये हो।
हथनापुर बंदन जइये हो ।। ३ ।।

अर्थ :

हे भव्य हस्तिनापुर की यात्रा करने के लिए वंदन करने के लिए जाओ । वहाँ शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ की प्रतिमाएँ विराजमान हैं, उनकी पूजा कर आनन्द व लाभ प्राप्त करो।

वहाँ राजा श्रेयांसकुमार जैसे दानी हुए हैं, जिन्होंने तीर्थंकर आदिनाथ को सर्वप्रथम आहारदान दिया था, उस दिन का (अक्षय तृतीया का ) गुणगान आज भी किया जाता है।

द्यानतराय जी कहते हैं कि ऐसे प्रसिद्ध स्थान की वन्दना करो और प्रभु के गुणों का चिंतवन करो, भक्ति करो, उनके गुणों से लौ (लगन) लगाओ।

विशेष: हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को उनको मुनि अवस्था में छ माह के उपवास के बाद प्रथम आहार के रूप में इक्षुरस (गन्ने का रस ) का आहार करवाया था, तब से यह दिन 'अक्षयतृतीया के रूप में आज भी मान्य है।

रचयिता: पंडित श्री द्यानतराय जी
सोर्स: द्यानत भजन सौरभ ( पृष्ठ क्र. ३७३)