हरी तेरी मति नर कौनें हरी । Hari Teri Mati Nar Kone Hari

हरी तेरी मति नर कौनें हरी

हरी तेरी मति नर कौनें हरी तजि चिन्तामन कांच गहत शठ । । टेक ॥।

विषय- कषाय रुचत तोकों नित, जे दुखकरन अरी ||१ ||
सांचे मित्र सुहितकर श्रीगुरु तिनकी सुधि विसरी ।। २ ।।
परपरनतिमें आपो मानत जो अति विपति भरी ।। ३ ।।
‘भागचन्द’ जिनराज भजन कहुँ, करत न एक घरी ||४ ||

रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन