(तर्ज : चित्स्वरूप महावीर…)
ज्ञानानंद बरसाय, नाथ तेरी भक्ति में।
आनंद उर न समाय, नाथ तेरी भक्ति में । टेक।।
मूरति है प्रभु ध्यानमयी, भाव जगावे ज्ञानमयी।
परमानंद उलसाय, नाथ तेरी भक्ति में ।।1।।
अनंत चतुष्टय अविकारी, गुण अनंत मंगलकारी।
आतम महिमा आय, नाथ तेरी भक्ति में ।।2।।
हाथ पै हाथ धरे स्वामी, अन्तर्दृष्टि सुखदानी।
भेदविज्ञान जगाय, नाथ तेरी भक्ति में ।।3।।
अहो! आप सा आत्म स्वरूप, नित्य निरामय शुद्ध चिदुप।
प्रत्यक्ष रहो दिखाय, नाथ तेरी भक्ति में ।।4।।
दर्शन करते आनन्द हो, गुण चिंतत परमानन्द हो।
स्वयं शीस नमि जाय, नाथ तेरी भक्ति में ।।5।।
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’