गूँजे जय जयकार, वीर जयवन्त रहो | Gunje, Jay Jaykar, Veer Jayvant Raho

गूँजे जय जयकार, वीर जयवन्त रहो।
आनन्द अपरम्पार, वीर जयवन्त रहो।।टेक।।

ज्ञान शून्य आडम्बर छाये, कोई शुष्क ज्ञान भरमाये।
हुआ जन्म सुखकार, वीर जयवन्त रहो।।1।।

इन्द्रादिक कल्याण मनाये, नर नारी अति ही हर्षाये।
साचे तारणहार, वीर जयवन्त रहो।।2।।

धर्म महोत्सव के आनन्द से, प्रभु के शान्त रूप दर्शन से।
जागे तत्त्व-विचार, वीर जयवन्त रहो।।3।।

धीर वीर गम्भीर सु-अनुपम, प्रभुवर का व्यक्तित्व मनोरम।
देखते हुए निहाल, वीर जयवन्त रहो।।4।।

भोगों में प्रभु नहीं फँसे थे, मुक्तिमार्ग में सहज बढ़े थे।
निर्ग्रन्थ पद अवधार, वीर जयवन्त रहो।।5।।

आत्मसाधना करके स्वामी, अर्हत् पद पायो जगनामी।
किया तीर्थ उद्धार, वीर जयवन्त रहो।।6।।।

सम्यक् वस्तु स्वरूप प्रकाशा, भविजन मोह महातम नाशा।
जाना जाननहार, वीर जयवन्त रहो ।।7।।।

हर्षित हो प्रभु के गुण गायें, अनेकान्त समझे समझायें।
धर्म अहिंसा सार, वीर जयवन्त रहो ।।8।।

मंगल उत्तम शरण तुम्हीं हो, धर्ममूर्ति सर्वस्व तुम्हीं हो।
करें नमन सुखकार, वीर जयवन्त रहो।।9।।

Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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