घटमें परमातम ध्याइये हो, परम धरम धनहेत
ममता बुद्धि निवारिये हो, टारिये भरम निकेत।।घटमें. ।।
प्रथमहिं अशुचि निहारिये हो, सात धातुमय देह ।
काल अनन्त सहे दुखजानैं, ताको तजो अब नेह ।।घटमें. ।।१ ।।
ज्ञानावरनादिक जमरूपी, निजतैं भिन्न निहार ।
रागादिक परनति लख न्यारी, न्यारो सुबुध विचार ।।घटमें. ।।२ ।।
तहाँ शुद्ध आतम निरविकलप, ह्वै करि तिसको ध्यान ।
अलप कालमें घाति नसत हैं, उपजत केवलज्ञान ।।घटमें. ।।३ ।।
चार अघाति नाशि शिव पहुँचे, विलसत सुख जु अनन्त ।
सम्यकदरसनकी यह महिमा, `द्यानत’ लह भव अन्त ।।घटमें. ।।४ ।।
Artist - श्री द्यानतराय जी