घर घर आनंद छायो, मुनिवर ने केवल पायो ।।टेक।।
शुक्लध्यान का दूजा पाया, प्रभु ने आतमध्यान लगाया।
पहिले चारित्र मोह विनाशा, सम्यक चारित्र रत्न को पाया ।।
चहुँ गति दुक्ख नशायो नशायो ।।1।।
मात्र एक अन्तर्मुहूर्त में, ज्ञान दर्शनावरण नशाया।
तत्क्षण ही निज आत्म वीर्य से, अंतराय घातिया नशाया ।।
अनंत चतुष्टय पायो जी पायो ।।2।।
शुक्लध्यान का तीजा पाया, सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाती सुहाया।
प्रभु ने अद्भुत ध्यान लगाया, काय योग अतिसूक्ष्म रहाया ।।
आतम रस बरसायो-बरसायो ।।3।।
शुक्लध्यान का चौथा पाया, व्युपरत क्रिया निवृत्ति सुहाया।
प्रभु ने योग निरोध कराया, मन-वच-काय संबंध नशाया ।।
शाश्वत सिद्ध पद पायो जी पायो ।।4।।
पुण्य उदय है आज हमारे, नेमीश्वर गिरनार पधारे।
आत्मसाधना पूरी करके, प्रभु शाश्वत शिवधाम पधारे ।।
सुरपति ने उत्सव मनायो मनायो ।।5।।