गर्भकल्याणक शुभ घड़ी पावन, आयी सखी री।
आयी आयी सखी री, मंगल गाओ सखी री ।।टेक।।
निज स्वभाव सम निर्मल जल के, मंगल कलशा भर लाओ।
मलयागिरि का चंदन लाओ, दसों दिशाएँ महकाओ।।
तीन लोक के नाथ विराजे माता थारे उर में - 3।
सखियो माँ की सेवा करें - 2…।।गर्भ…।।1।।
नव सर हार पहनाओ माँ को, चंदन तिलक लगाओ।
निर्मल जल से चरण पखारो, परिणति शुद्ध बनाओ।।
मां की सेवा से सफल हो नारी पर्याय,
अपनी नश्वर पर्याय - 2…।।गर्भ…।।2।।
रूप अनुपम सुंदर माँ का, क्या उनका श्रृंगार करें।
वस्त्राभूषण मूल्यवान हों, तब माता स्वीकार करें।।
रत्नाकर चैतन्य महिमा माता मन भांंय - 2,
प्रभु माता मन भाय।।
हर्ष उर में न समाय ओsss।।
सखियो माँ की सेवा करें…।।गर्भ…।।3।।