(सवैया 23)
रोजगार चलै नाहिं दाम है न गाठिं माहिं,
आय गयो टोटो भयौ कर्ज सिर भारी है।
लैने वाले मांगत हैं देने वाले देते नाहिं,
हो गई कुड़क ये हवेली हाट सारी है।।
घर माहिं भूखे पड़े बालक विलाप करैं,
खाने की फिकर घरवाली देत गारी है।
ऐसी हू दशा में नहिं करै आत्मा का हित,
अरे मूढ़ प्राणी तेरी गई मति मारी है।।1।।
महल मकान बड़े अश्व गज रथ खड़े,
मोटर फिटर नाना भांति असवारी है।
गाय भैंस बंधी घर चाकर अनेक नर,
लाखन का रोज रोजगार चलै भारी है।।
जेवर जवाहिरात धन कन कंचन है,
बेटा-बेटी पोता पोती दीखत अगारी है।
ऐसी हू दशा में न निजातमा का हित करै,
अरे मूढ़ प्राणी तेरी गई मति मारी है।।2।।
छोटी सी कुठरिया में सैकड़ों सूराख भये,
वारिस में छत टप टप टपकत है।
गलि गई चौखठि किवाड़ सब टूटि गये,
चूहा नौल साँप चमगादड़ फिरत है।।
टूटी सी खटुलिया में लाखों खटमल पड़े,
काटत हैं रातभर नींद न परत है।
पेट भर खाने को न चीथड़ा लपेटने को,
ऐसी हू दरिद्रता में घर न तजत है।।3।।
अरे जग प्राणी काहे ह्वै रह्यो गुमानी नैक,
धन कन कंचन धरापै इतरात है।
ऊंची ये हवेली नारि सुन्दर नवेली कोई,
साथ नाहिं जात मात तात सुत भ्रात है।।
घोड़े रथ हाथी यार गार संग साथी होय,
कोई न संगाती परलोक जब जात है।
तातें तू गुमान छोड़ि मोह ममता मरोड़ि,
धरम सों प्रीति जोड़ि चाहै कुशलात है।।4।।
वे दिन चितार यार मात कोखि के मँझार,
बसे नव मास सांस सांसन को भटके।
खून मल मूत में लिपटि रहे रात दिन,
ऊपर को पांव सिर नीचा करि लटके।।
स्वर्णकार जैसे तार जंती में से काढैं तैसे,
दाई ने निकासि करि भूमि पर पटके।
हाय हाय आज तुम जोबन के मद छके,
भूलि करि सारी बात विषयों में अटके।।5।।