ऐसे साधु सुगुरु कब मिलि हैं ||
आप तरैं अरु पर को तारें, निष्पृही निर्मल हैं ॥(1)
तिल तुष मात्र संग नहिं जिनके, ज्ञान-ध्यान गुण बल हैं ॥(2)
शांत दिगम्बर मुद्रा जिनकी, मन्दर तुल्य अचल हैं ॥(3)
‘भागचन्द’ तिनको नित चाहें, ज्यों कमलनि को अलि हैं ||(4)
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