Eating after Sunset

Why is it forbidden to eat after sunset? What are the main reasons behind it? Share the religious as well as scientific perspective with some real-life examples.

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Health wise it is recommended to eat dinner 2-3 hours before sleep time.

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Those who follow Jainism properly don’t eat after sunset. The logic behind this is that there are no UV rays after sunset. The UV rays resist the occurrence of organisms in the food. You can notice that mosquitoes bite mostly in the night, in the daytime they are resisted by UV rays.

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What I have read as per that bacterias emerges in food which contains water., When there is no sun light. That is why we don’t eat cooked vegetables etc. Of overnight. Correct me if m wrong

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रात्रि में भोजन अभक्ष्य का भोजन है
जिस रंग का खाना होता है उसमें उसी रंग के तमस्काय जाती के जीव उत्पन्न होते है, उसे भक्षण करने से महादोष लगता है
रातमें अन्य छोटे जीवों की अधिक मात्रा में उत्पत्ति होती है
रसोई में दीवार के आसपास सूक्ष्म जीव अग्नि से मर जाते है
शरीर मे दो प्रकार के कमल होते है जो सूर्यास्त के साथ शरीर मे संकुचित हो जाते है जिससे पाचन किया सही नही हो पाने से शरीर मे रोग उत्पन्न होते है।

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Related thread: रात्रि भोजन त्याग

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रात्रि भोजन सम्बन्धी - जैन मान्यता एवं साक्ष्य

http://www.jainkosh.org/wiki/रात्रि_भोजन

Must read.

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Ratri me dugdhpaan karna, moogfali ke daane, makhane , dry fruits,ityadi ka sevan kaha tak uchit h

व्रती और अव्रती का अन्तर है।

Mera puchne ka mtlb heki, mera lena sahi he ya galat.kyuki, mera ratri bhojan tyag he, per me ye sab leta hu

रात्रि भोजन त्याग में सभी प्रकार के और सभी प्रकार से आहार का त्याग होता है।
जिससे शरीर को पोषण मिले वह आहार है
इस लिए रात्रि में नहाना नहि चाहिए (रोमछिद्रों से आहार होता है)
दवाई लेना और मलहम आदि लगाना भी वर्ज्य है

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भाई! आपने नियम लेते समय किस प्रकार का नियम लिया था… उससे नियम का स्वरूप बनता है।
साथ ही नियम का स्वरूप जाने बिना यदि नियम ले लिया है तो पहले -

  1. नियम-सामान्य का स्वरूप समझें (साथ ही नियम लेने की आवश्यकता पर विचार करें)
  2. रात्री भोजन त्याग का स्वरूप अनेक ग्रंथों से विचारें
  3. अपने गुणस्थान और शारीरिक आवश्यकता का विचार करें
  4. फिर विधिपूर्वक अपने पुराने नियम में संशोधन करें।
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रोम छिद्रों से आहार होता है
ये किस ग्रन्थ में आया है

10 प्रकार के आहारों में लेपाहार, ओजाहार इत्यादि का,
रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि के आहार के प्रकरण में, वर्णिन है।

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लेह आहार आता है लेप आहार नहीं
और मूलाचार में असन पान खाद्य और स्वाद आता है
लेप आहार का कोई और प्रमाण दे

https://forum.jinswara.com/uploads/default/original/2X/5/532d1134fb31565c5cc84d3ad628c4447fa9e673.jpeg
यंहा पर भी लेह्य है लेप नहीं

जहाँ-जहाँ 6 या 10 प्रकार का आहार का वर्णन है वहाँ-वहाँ सर्वत्र लेपाहार वर्णित है।

कोष या जैन गणित आदि में कहीं भी देख लें।

पद्मपुराण में आता है , राम चंद्र जी ने पूर्व भव में रात्रि में फल खाने को मांगे थे, तब एक श्रावक ने समझाया था कि रात्रि में कुछ भी नहीं खाना चाहिए ।
पर अन्न को छोड़कर बाकी चीजे खा लेने का trend कहा से आया, ये नहीं पता

अधुना प्रोषधोपवासस्य लक्षणं कुर्वन्नाह-

चतुराहारविसर्जनमुपवासः प्रोषधः सकृद्भुक्तिः ।
स प्रोषधोपवासो यदुपोष्यारम्भमाचरति ॥ १९ ॥

चत्वारश्च ते आहाराश्चाशनपानखाद्येह्यलक्षणा:। अशनं हि भक्तमुद्गादि, पानं हि पेयमथितादि, खाद्यं मोदकादि, लेह्यं रब्रादि, तेषां विसर्जनं परित्यजनमुपवासोऽभिधीयते। प्रोषध: पुन: सकृद्भुक्तिर्धारणकदिने एकभक्तविधानम्। यत्पुनरुपोष्य उपवासं कृत्वा पारणकदिने आरम्भं सकृद्भुक्तिमाचरत्यनुतिष्ठति स प्रोषधोपवासोऽभिधीयते इति॥ १९॥

प्रोषधोपवास का लक्षण कहते हैं-

चार प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास है। एक बार भोजन करना प्रोषध है और जो उपवास करने के बाद पारणा के दिन एक बार भोजन करना है, वह प्रोषधोपवास है।

टीकार्थ- आहार चार प्रकार का है- अशन, पान, खाद्य, लेह्य। भात, मंूग आदि अशन कहलाते हैं। छाछ आदि पीने योग्य वस्तु पेय कहलाती है। लड्डू आदि खाद्य हैं। रबड़ी आदि चाटने योग्य पदार्थ लेह्य हैं। इन चारों प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास कहलाता है। एक बार भोजन करने को प्रोषध कहते हैं। धारणा के दिन एकाशन और पर्व के दिन उपवास करना पुन: पारणा के दिन एकाशन करना प्रोषधोपवास कहलाता है।

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इस सम्बन्ध में छुल्लक जिनेन्द्र वर्णी कहते हैं -

जैन आम्नाय में रात्रि भोजन में त्रसहिंसा का भारी दोष माना गया है। भले ही दीपक व चन्द्रमा आदि के प्रकाश में आप भोजन को देख सकें पर उसमें पड़ने वाले जीवों को नहीं बचा सकते। पाक्षिक श्रावक रात्रि भोजन त्याग व्रत को सापवाद पालते हैं और छठी प्रतिमा वाला निरपवाद पालता है।

कृपया अतिवाद और उदारवाद दोनों को छोड़ वास्तविकता पर टिकें और चुटकर-फुटकर विचार नहीं; प्रत्येक गुणस्थान की अपेक्षा व्रतों में उत्तरोत्तर वृद्धि की दशा समझते हुए ही निर्णय करें।

बड़े पाप को छोड़े बिना छोटे पापों को छोड़ने का विचार अनर्थकारी एवं अत्यल्पफलदायी है।

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