Eating after Sunset

मनुषयो मे लेपाहार नहीं होता उन को तो चार प्रकार का ही आहार होता है किसी भी व्यक्ति का तेल मालिश या मरहम से क्षुधा शांत नहीं होती और पानी से नहाने से तृषा शांत नहीं होती
इसलिये मालिश और मरहम को आहार मानना गलत है

@Vikas13 जी
प्रयोग करके देखिए
जब प्यास लगी हो तब नहा लीजिए
तृषा शांत होगी
तेल की मालिश से भी तेल रोम छिद्रों से शरीर में जाता है जिससे शाता होती है
जिससे पोषण मिले वो आहार
मालीश मरहम आदि इस प्रकार से आहार ही है

सिर्फ़ तर्क करना उचित नहि

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लेपाहार - वनस्पतियों को यह आहार ही माना गया है, मात्र वनस्पतियों को नहीं। (क्योंकि मानसिक आहार देवताओं को स्वीकार किया गया है, तो क्या हम मन में भोजन के विचार से सन्तुष्ट नहीं होते देखे जाते हैं? और तो और नोकर्माहार भेद मुख्यता अरहंतों को होता है तो क्या हम नोकर्मों के ग्रहण से रहित होते हैं… इत्यादि सब विचार पूर्वक समझना चाहिए)

जो लोग उपवास या एकासन करते हैं उनमें इसका दोष भी बताया गया है।

(इसका मतलब यह नहीं समझना चाहिए कि साधुओं को वैयावृत्ति आदि करना सर्वथा दोष पूर्ण है, इसमें सर्व क्रियाएँ ज्ञानी श्रावक के विवेक पर निर्धारित है।)

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सापवाद और निरपवाद का अर्थ समझना आवश्यक है।

यहां पर सापवाद का अर्थ भोजन में कदापि नही लेना।
अर्थात जिसको अनाज का त्याग हो और रात को मूंगफली, फल,दूध आदि पी रहा हो और बोले रात्रि भोजन का त्याग है।
यह तो सातिचार पालन कर रहा हूं।यह तो आगम विरुद्ध हुआ।

4 थे गुणस्थान वाला
1 ) घरमे उसका जन्मा हुआ बच्चा हो उसको वो रात में दूध पिलाती है क्योंकि बच्चा न समज है उसको दिन और रात का पता ही नही है।प्रतिमा धरि यह भी नही करता।

  1. गृहस्थ होने के कारण मजबूरी वशत रात को आरम्भ की क्रिया भी देखने मे आती है।जैसे बर्तन मांजना, अगले दिन के भोजन की तैयारी करने आदि

  2. 4थे वाला किसीको औषधि के रूप में पिलाता है।प्रतिमा धरि नही कर सकता।

  3. कुल मिलाकर 4 थे वाले को कृत के स्तर पर कारित और अनुमोदना के स्तर पर नही छूटा है प्रतिमा धरि को मुनि के समान कृत कारित और अनुमोदना के स्तर पर छूट गया है।

  4. चौथा गुणस्थान प्राप्त करने के लिए अभक्ष्य का त्याग होना आवश्यक है।रात को पिया हुआ पानी भी अभक्ष्य ही है।
    चौविहार - चारो आहार का त्याग

एक आहार का त्याग करके सातीचार रूप से रात्रिभोजन का त्याग है यह स्वंछन्दता, अनाचार हुआ न कि सातीचार।कृपया सातीचार को स्वंछन्दता के साथ मिलाकर अभक्ष्य भक्षण न करे।
एक आहार के त्याग को रात्रिभोजन त्याग कहना भी आगम विरुद्ध कथन है।

4थे वाले को चारों आहार का त्याग तो होता ही है।बाकी के 6 आहार का त्याग हो भी सकता है और नही भी हो सकता।

सिद्धांत तो यही है। शक्ति के अनुसार आगे बढ़ना चाहिये शुरुआत में मेने 9 बजे के बाद चारो आहार का त्याग किया फिर 8 बजे और अभी अंधेरा होने बाद में चारो आहार का त्याग किया
इसी तरह अपने अनुसार कर सकते है।
परंतु सिद्धांत को बदलने का प्रयास कभी भी न करे।

यहाँ सिद्धान्त विरोधी तो कोई भी नहीं हैं, तो इस चिन्ता से आप मुक्त हों, जानकारी होने न होने की बात है।

और आप जिस विचारधारा से विचार कर रहे हैं वह अनुकरणीय है, लेकिन ज़बरदस्ती (दूसरों को सही-गलत का मोह) नहीं।

आगम का सभी अनुयोगों से अनेक गुणा भाग बिठाने पर ही निर्णय होगा। अतिचारों में जिस-प्रकार से प्रस्तुतिकरण किये हैं उन्हीं आधारों पर इसका भी निर्णय करना होगा। न तो ज्ञान की और नाही क्रिया की ज़बरदस्तियों का स्थान आगम में है।

अपवाद और निरपवाद = सातिचार और निरतिचार नहीं है। आप इस विषय पर जितने आगम प्रमाण हो सकता है इकठ्ठे करें फिर विचार करें… मैं कोई निष्कर्ष नहीं दे रहा हूँ, पर बहुत आयाम हैं उनपर विचार करने के लिए प्रेरणा मात्र कर रहा हूँ।

में यहां की नहीं overall general कह रहा हूँ।
मेने पुस्तक में पढ़ा है और सुना भी है सम्यकदृष्टि रात्रि भोजन कर सकता है परंतु उसको आसक्ति नही होती।
ऐसी स्वंछन्दता वाली बातें चलती है।
इस स्पष्टता के लिए बात कही और कुछ नही है।

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फिर तो आप सिर्फ़ मालिश कर के देखे छुधा शांत होती है या नहीं प्रयोग करे
ऐसा है तो फिर आप बोलेगे की उपवास के दिन धूप में भी नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वो भी आहार है

और धूप को मतलब सूरज की रोशनी को भी आहार माने क्योकि वनस्पति को तो वो भी आहार है।

क्षमा चाहता हूँ, अब आप ने चर्चा की दिशा को बहुत मोड़ दिया है, मैं हथियार डालता हूँ।

आप सही कह रहे है भई साहब @Sayyam जी
मैं भी हथियार डाल रहा हूँ :pray::sweat_smile: