दुनियाँ मतलब की गरजी, अब मोहे जान पड़ी || टेक ||
हरे वृक्ष पै पंछी बैठा, रटता नाम हरी |
प्रात भये पंछी उड़ चाले, जग की रीति खरी || १ ||
जब लग बैल वहै बनियां का, तब लग चाह घनी |
थके बैल को कोई न पूछै, फिरता गली गली || २ ||
सत्त बांध सत्ती उठ चाली, मोह के फन्द पड़ी |
‘घानत’ कहै प्रभु नहिं सुमरयो, मुरदा संग जली || ३ ||
Artist- पं. घानतराय जी