दिव्यध्वनि वीरा खिराई आज शुभ दिन,
धन्य-धन्य सावन की पहली है एकम् ।।टेक।।
आतम स्वभावं परभाव भिन्नम्
आपूर्णमाद्यंत- विमुक्तमेकम्।
मेरे प्रभु विपुलाचल पर आये, वैशाखी दसमी को घातिया खिपाये;
क्षण में लोकालोक लखाये, किन्तु न प्रभु उपदेश सुनाये।
वाणी की काललब्धि आई नहीं उस दिन;
धन्य-धन्य सावन की पहली है एकम्।।१।।
इन्द्र अवधिज्ञान उपयोग लगाये, समवसरण में गणधर न पाये;
इन्द्रभूति गौतम में योग्यता लखाये, वीर प्रभु के दर्शन को आये ।
काललब्धि लेकर के आई आज गौतम;
धन्य-धन्य सावन की पहली है एकम्।।२।।
मेरे प्रभु ॐकार ध्वनि को खिराये, गौतम द्वादश अंग रचाये;
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य सत् समझाये, तन चेतन भिन्न-भिन्न बताये।
भेद-विज्ञान सुहायो आज शुभ दिन;
धन्य-धन्य सावन की पहली है एकम्।।३।।
य एव मुक्त्वा नयपक्षपातं, स्वरूपगुप्ता निवसन्ति नित्यम्;
विकल्प जाल च्युत शांतचित्तास्त एव साक्षातमृतं पिबंति।
स्वानुभूति की कला सिखाई आज शुभदिन;
धन्य-धन्य सावन की पहली है एकम्।।४।।
- पं. अभयकुमार जी, देवलाली