द्यानतराय जी कवि | Dhyaanatraay ji kavi

[पण्डित द्यानतराय जी]

मैंने अभी मंगलाचरण में मोक्षमार्ग के नेताओं को प्रणाम किया है। सभी तीर्थंकर मोक्षमार्ग के नेता हैं और जब तीर्थंकरों का अभाव हुआ तो आचार्य मुनिराज वे हमें मोक्षमार्ग में ले जाने का कार्य करते रहे लेकिन बाद में जब जैनाचार्य निर्ग्रन्थ मुनि भी होना बंद हो गए तो इन जैन विद्वानों ने मोक्षमार्ग पर ले जाने का महान कार्य किया। ये भी मोक्षमार्ग के नेताकल्प बन गए इसलिए हम इन सब के योगदान को याद कर रहे हैं इनका परिचय प्राप्त कर रहे हैं, इनका स्वरूप समझ रहे हैं। ये कौन थे? कैसे-कैसे थे? इनका हमारे ऊपर कितना उपकार है और इस क्रम में अभी तक हमने कई विद्वानों का परिचय प्राप्त किया। हमने पण्डित बनारसीदास जी, पण्डित भूधरदास जी, पण्डित भगवतीदास जी, पण्डित दौलतराम जी, पण्डित भागचंद जी आदि का परिचय अब तक प्राप्त किया। आज हम कविवर पण्डित द्यानतराय जी का परिचय प्राप्त करेंगे। हम समझेंगे कि पण्डित द्यानतराय जी कौन थे और उन्होंने क्या काम किया? उनका क्या योगदान है? हमारा आज का विषय है कविवर पण्डित द्यानतराय जी।

कविवर पण्डित द्यानतराय जी का जन्म आज से ठीक साढ़े तीन सौ वर्ष पहले विक्रम संवत् 1733 में आगरा के पास एक लालपुर गाँव है वहाँ हुआ था बाद में वे आगरा ही शिफ्ट हो गए थे। उनके पिताजी का नाम श्यामदास था। उनके दादाजी का नाम वीरदास था। वे अग्रवाल कुल में गोयल गोत्र में उत्पन्न हुए थे। कविवर पण्डित द्यानतराय जी आगरा में साहित्य की साधना कर रहे थे और जिनवाणी का प्रचार-प्रसार, आराधना कर रहे थे। बहुत ही महान काम कर रहे थे। असल में यूँ समझ लो हम आगरा की यात्रा कर रहे हैं। आप कल्पना करो कि आज से साढ़े तीन सौ वर्ष पहले हम आगरा में रहते हों और ये बनारसीदास, भगवतीदास, भूधरदास हमको द्यानतराय जी जैसे महाकवियों की शास्त्र सभाएँ, शैलियाँ मिली हों। मैं तो उनमें डूबा हुआ हूँ। मुझे ऐसा ही लग रहा है कि साढ़े तीन सौ साल पुराना हूँ, आगरा में रहता हूँ और इनके सुबह-शाम धार्मिक, आध्यात्मिक कार्यक्रमों में उठ बैठ रहा हूँ ऐसी मुझे अनुभूति हो रही है। मुझे लग रहा है बहुत आनन्द आ रहा है। बहुत अच्छी-अच्छी चर्चाएँ वे सुना रहे हैं। वे सब चर्चाएँ में सुन रहा हूँ और बहुत गद-गद हो रहा हूँ और उन्हीं बातों को आप सब के सामने बाँट रहा हूँ। बनारसीदास जी तो हुए थे अकबर के जमाने में उसके बाद में और राजा हुए। शाहजहाँ तक का क्रम आया फिर बाद में जब द्यानतराय जी हुए थे उससमय आगरा में औरंगजेब राजा का शासन चलता था। द्यानतराय जी ने खुद अपनी रचनाओं में औरंगजेब का भी परिचय दिया है और आगरा का भी परिचय दिया है और बनारसीदास, भगवतीदास इस सब का उपकार माना है। द्यानतराय जी को पढ़ने से पता चला कि आगरा में एक ही शास्त्र सभा नहीं चलती थी। आगरा में एक शास्त्रसभा बनारसीदास आदि की चलती थी वो चली बाद में आगरा की कॉलोनी में कम-से-कम पाँच-सात सभाएँ चलने लगी। द्यानतराय जी जिस सभा में प्रवचन करते थे भजन-पूजन करते थे वो बिहारीदास जी इनके गुरु थे उससमय और वो बिहारीदास जी भी प्रवचन करते थे इन्होंने उनका उपकार माना है और उनकी सभा से बहुत ज्ञान लाभ प्राप्त किया ऐसा लिखा है और आगरा का बहुत सुन्दर वर्णन लिखा है। इन्होंने ये लिखा है यहाँ पर बहुत श्रावक लोग हैं, बहुत जैन समाज है और सब-के-सब बहुत ज्ञानी हैं और ज्ञानी ही नहीं, सब आतमज्ञानी हैं। आत्मज्ञानी श्रावकों की नगरी आगरा थी और उन्होंने आगरा का भौगोलिक वर्णन भी किया है। जिसके बगल में यमुना नदी गुजरती है, चौड़ी-चौड़ी सड़कें हैं। दिल्ली से भी अधिक शोभायमान सकड़ें हैं। इन कवियों पर विचार गोष्ठियां, सेमिनार आदि करना चाहिए तब जाकर इनका असली योगदान सामने आ सकेगा। द्यानतराय जी कैसे थे? द्यानतराय जी कौन थे? हम सभी द्यानतराय जी से बहुत अच्छी तरह परिचित हैं। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जो द्यानतराय जी की रचनाएँ ना पढ़ता हो। ऐसा एक भी जैन व्यक्ति नहीं होगा जो द्यानतराय जी की रचनाएँ ना पढ़ता हो, ऐसी एक भी जिनवाणी नहीं होगी, ऐसा एक भी मंदिर नहीं होगा जहाँ द्यानतराय जी की पूजाएँ ना चलतीं हों। द्यानतराय जी की बहुत अच्छी-2 पूजाएँ हैं, भजन हैं।

रचनाएँ-

पहली रचना–धर्मविलास

द्यानतराय जी ने धर्मविलास नाम की किताब लिखी है जिसका नाम द्यानतविलास है। द्यानतविलास तो हम कहते हैं जैसे- दौलतविलास, बनारसीविलास, भूधरविलास है ऐसे ही इसको हम कह देते हैं पर ये वास्तव में द्यानतविलास नहीं है। इसका नाम-- धर्मविलास है। उन्होंने कहा इसमें धर्म की चर्चा है। ऐसे ही जब हमने भगवतीदास जी को पढ़ा था तब भगवतीविलास नहीं मिला ब्रह्मविलास मिला। जब कवि स्वयं अपनी रचनाओं का संग्रह अपने सामने कर जाता है तो वो अपने नाम से नहीं चलता तो वो कुछ और भगवतीदास जी ने खुद बनाया तो रखा ब्रह्मविलास। इन्होंने खुद बनाया तो नाम रखा धर्मविलास और दौलतराम जी ने दौलतविलास खुद नहीं बनाया। उनके जाने के बाद दूसरे लोगों ने संग्रह किया। बनारसीविलास बनारसीदास जी ने खुद नहीं बनाया उनके जाने के बाद दूसरे लोगों ने संग्रह किया इसलिए उसका नाम बनारसीविलास रखा। इस धर्मविलास में द्यानतराय जी की 45 रचनाएँ हैं। बहुत विशालकाय ग्रंथ है। आज से हजार वर्ष पहले धरती पर नग्न दिगम्बर संत मुनि-महाराज विचरण करते थे और उनसे मोक्षमार्ग की प्राप्ति हो जाया करती थी लेकिन जब उनका अभाव हुआ तो मोक्षमार्ग बिल्कुल अँधेरे में डूब गया। सारे देश की परिस्थितियां खराब हो गई। राजनीतिक, शैक्षणिक सब परिस्थितियां खराब हो गई। लोगों को तत्त्वज्ञान की प्राप्ति दुर्लभ क्या असंभव हो गई और ऐसी स्थिति में इन्हीं कवियों का ये योगदान है जो आज हमको असली जैनधर्म का मर्म प्राप्त हुआ है; यदि ये नहीं हुए होते तो बाद में जो और ज्ञानीजन हुए हैं टोडरमल जी इत्यादि ये भी हमको नहीं मिलते। इतना बड़ा इनका योगदान है। द्यानतविलास में साढ़े तीन सौ भजन लिखे। इतने भजन शायद किसी के नहीं हों। परिमाण की दृष्टि से सबसे ज्यादा लिखने वाला कोई कवि हुआ है तो वो द्यानतराय जी हुए हैं। द्यानतराय जी की तुलना में औरों ने बहुत कम लिखा होगा। दौलतराम जी के सवा सौ भजन हैं।

धिक-धिक जीवन समकित बिना, दान शील तप व्रत श्रुत पूजा
आतम हेतन ऐक गिना, जैसे बिना ऐकड़े बिन्दी त्यौं समकित बिन समकित बिना…

ये सुन्दर भजन। सम्यग्दर्शन की महिमा बताने वाला। इस भजन के दाता कौन हैं? द्यानतराय जी।

अब हम अमर भये ना मरेंगे, तन कारन मिथ्यात्व दियो तजि
क्यों करि देह धरेंगे, द्यानत निपट निकट दो अक्षर बिन सुमरे सुमरेंगे।

द्यानतराय जी एक घण्टे में समझ में आने वाले नहीं है। तीन दिन का उत्सव होना चाहिए और इनके भजनों को गाने के लिए बड़े-बड़े गायकों को बुलाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम कराना चाहिए। चार-छह घण्टों की सभा होनी चाहिए जिसमें सभा डूब जाएगी। नाचने लगेगी तब आपको पता चलेगा कि द्यानतराय जी क्या चीज हैं? अब हम अमर भये ना मरेंगे… ये भजन महात्मा गांधी जी को बहुत पसंद था। महात्मा गांधी अपने सावरमती आश्रम में जो शाम को जो प्रार्थना करते थे उसमें ये भजन रोजाना बोला जाता था। आज भी ये भजन वहाँ की प्रार्थना की जो किताब है उसमें लिखा हुआ है। ये भजन आपको हमें किसने दिया… द्यानतराय जी ने। एक ऐसा ही भजन है हमतो कबहुँ ना निजघर आए, परघर फिरत बहुत दिन बीते नाम अनेक धराए। हम तो कबहुँ ना निजघर आए।
वे प्राणी सु ज्ञानीजिन जानी जिनवाणी, जानी जिनवाणी जिन जानी जिनवाणी। वे प्राणी सु ज्ञानीजिन। चन्द्र सूर्य हूँ दूर करे नहिं, अंतरतम की हानि पक्ष सकल नय भक्ष करत है, वे प्राणी सु ज्ञानीजिन जानी जिनवाणी। द्यानत तीन भवन मंदिर तीवट एक बखानि। वे प्राणी सु ज्ञानीजिन जानी जिनवाणी।

दूसरी रचना-- आगमविलास
आगमविलास में 46 रचना हैं। 91 किताबें लिखीं हैं उस जमाने में। आगमविलास में ज्यादातर आगम के सैद्धांतिक विषय हैं। आगमविलास में करणानुयोग के विषय हैं। संस्थान क्या? संहनन क्या? पाँच शरीर क्या होते हैं? जीव विग्रह गति में कैसे जाता है?

तीसरी रचना–चर्चाशतक
इसके अलावा एक रचना है चर्चाशतक। आजकल लोगों ने उपेक्षा कर दी इन महान कवियों की इसलिए आज ये कह रहा हूँ। शतक माने सौ बड़े-२ सवैय्या हैं। छप्पय हैं और इसमें अलग-२ विषय आए हैं। इसमें भी आगम के सैद्धांतिक विषय ज्यादा हैं। कर्मप्रकृतियाँ कितनी, क्या नाम? चर्चाशतक के अंत में लिखते हैं कि बहुत से लोग प्रवचन सुनते हैं लेकिन एक कान से सुनते हैं और दूसरे से निकाल देते हैं। इसलिए मैंने यह लिखा है। एक सवैये से २२ परीषहों के नाम याद हो जाऐंगे। एक सवैये में कर्म प्रकृतियों का नाम। एक सवैये में तीन लोक का स्वरूप। एक सवैये में ये पता चल जाएगा कौन जीव कहाँ-कहाँ पैदा होता है और कौन जीव कहाँ पैदा नहीं होता है। गति-अगति पता चल जाएगी एक सवैये में बहुत सारग्राही, बहुत अच्छे-२ छंद हैं। शतक माने सौ छंद हैं। छह काल क्या-२ हैं और उन छह कालों की क्या विशेषता है वो सब एक सवैये में पता चल जाएगी और ये सवैये उससमय सबको याद थे। गली-२ में लोग इनको ही गाते थे। इनको ही सुनाते थे।जैसे आज हम गाते रहते हैं ना 22 अभक्ष्यों के नाम बताओ तो वो छंद याद हों तो याद होता है। ऐसे ही इन्होंने हर चीज के छंद बना दिए। उत्कृष्ट जीव की आयु कितनी? चौरसीलाख योनियाँ क्या होती हैं? पाँच इन्द्रियों के विषय क्या हैं? इन्द्र की सेना क्या है? प्रमाद के भेद क्या हैं? निगोदरहित जगह कौनसी है? आयुबंध के स्थान कौन-कौन से हैं? आयु कैसे बनती है? तीनलोक के कितने चैत्यालय?

चौथी रचना–भेदविज्ञान

भेदविज्ञान रचना का दूसरा नाम है आत्मानुभव। द्यानतराय जी को ज्यादातर लोग केवल पूजा-पाठ वाले जानते हैं। उन्होंने पूजा-पाठ बहुत लिखे हैं लेकिन वे पूजा-पाठ वाले ही नहीं हैं। वो रचना मुझे पढ़ने को नहीं मिली है इसलिए मैं उसके बारे में नहीं बता सकता।

पाँचवीं रचना–छहढाला

आप जानते हैं जो आज छहढाला दौलतराम जी की चलती है उससे पहले किसने लिखी? बुधजन जी ने लिखी थी और बुधजन जी से पहले छहढाला किसने लिखी? द्यानतराय जी ने। आप सभी द्यानतराय जी का क्या योगदान है इस पर लेख लिखेंगे तब आपको पता चलेगा कि क्या योगदान है? छहढाला का इन्होंने वास्तविक नाम सुबोध पचासिका रखा था। इसमें 52 छंद हैं। इसमें छह तर्ज थीं।
ओंकार मंझार पंच परम पद बसत हैं…
इसलिए यह रचना छहढाला के नाम से प्रचलित हो गई। उसके बाद बुधजन जी ने लिखी और इसके बाद दौलतराम जी ने लिखी। जो हमको छहढाला दी, छोटा समयसार, गागर में सागर भरकर के वो मिलने का भी श्रेय किसी को जाता है तो वो द्यानतराय जी को जाता है।

इन्होंने बहुत पूजाएँ लिखीं हैं। मंदिर- मंदिर में नहीं, सात समुंदर पार भी हैं। बहुत सारे स्तोत्र लिखे। स्वयंभू स्तोत्र लिखा।

राजविषें जुगन सुख कियो राजत्याग भरि शिवपद दियो…

द्यानतराय जी जैसा संगीत, लय कोई नहीं जानता था। उनके द्वारा बनाई गई-- दशलक्षण पूजा, सोलहकारण पूजा, नन्दीश्वर पूजा, पंचमेरू की पूजा कोई बना नहीं सकता। बच्चे बच्चे के गले में चढ़ गई। इतना अच्छा उसका स्वर है।अंग्रेजों के गले पर चढ़ गई। मैंने केलीफोर्निया में छोटे-छोटे बच्चों से सुना गाते हुए। अपने आप पैर थिरकने लगते हैं। लोग नाचने लगते हैं। द्यानतराय जी ने लिखा है जो आध्यात्मिक क्रांति बनारसीदास जी, भगवतीदास जी ने की उससे निकट भव्यजीव तो धर्म से जुड़ गए लेकिन जो आम जनता उससमय चार करोड़ जैन भारत में पाए जाते थे। आज हम एक करोड़ भी नहीं हैं। उस हिसाब से देखा जाए तो आज हम पच्चीस करोड़ होना चाहिए। द्यानतराय जी लिखते हैं कि बाकी को भी तो जोड़ना है इसलिये पूजाएँ लिखीं। पूजाओं में तत्त्वज्ञान भरा। नन्दीश्वर पूजा,चौबीस तीर्थंकर पूजा आदि की लय तो देखो।
चौबीसों श्रीजिनचंद आनंदकंद सही पदजजत हरत भवभंद पावत मोक्षमही।

यह अरघ कियो निजहेत तुमकौं अरपतुं हों, द्यानत कीज्यो शिवखेत भूमि समरपतु हों।

हे भगवन् मैंने मोक्ष का खेत किया है। इसके लिए आपको भूमि समर्पित कर रहा हूँ। क्या भूमि है? ये जो जितना भी परिग्रह जोड़ा है लेकिन आज मैं ये सब जो परिग्रह जोड़ा है वो सब आपको समर्पित करता हूँ, त्यागता हूँ। जिसदिन ये सारे परिग्रह की महिमा खतम होगी। हमको ये परिग्रह तुच्छ लगेगा। जिसदिन हमें सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र ही रत्न लगेंगे उसदिन समझो हमको पात्रता जाग्रत होगी। चार करोड़ जैनों को जोड़ने के लिए द्यानतराय जी ने जो योदगान दिया है इसके लिए उनकी सोने से, हीरे से मूर्ति बनाओ तो भी हम उनका उपकार नहीं चुका सकते। उन्होंने एक-२ आदमी को जोड़ा, धर्म के मार्ग पर लगाया। अच्छी-२ पूजा बनाई। रत्नत्रय पूजा में तो देखो कितना तत्त्वज्ञान भरा है। ऐसे ही सोलहकारण पूजा। संगीत, लय, भाषा पर अधिकार। द्यानतराय जी का उपकार अद्भुत है। उन्होंने एक-एक आदमी को, दुकानदार, महिलाएँ… सबको जैनधर्म पर लगाया। सब लोग समयसार नहीं पढ़ सकते। सब लोग ऊँची-२ चर्चा नहीं कर सकते। उन सब लोग को सँभाल कर रखना था। सब लोग धीरे-२ मार्ग पर लग जाएंगे लेकिन उनको सँभालने के लिए महापुरुषों की, ऐसे हीरो की जरूरत होती है। जो सँभाल ले तो उन्होंने बहुत अच्छी-२ पूजाएँ लिखीं। एक और खास बात उन्होंने अपनी तरफ से बहुत कम लिखा। ये इन सब कवियों की विशेषता थी। खुद तो मूल ग्रंथ पढ़ते थे समयसार, प्रवचनसार, अष्टपाहुड़, गोम्मटसार आदि। खुद तो फैक्ट्री से माल लाते थे और खेरीज में बेचते थे आम जनता को फुटकर बेचते थे।

कीजे शक्ति प्रमाण शक्ति बिना सरदा धरैं
द्यानत सरधावान अजर अमर पद को लहे।

ये छोटा सा सोरठा है लेकिन आप जानते हो ये कहाँ से आया है- ये कुन्दकुन्द आचार्य की दर्शनपाहुड़ की गाथा है।

जं सक्कई तं किज्जई जं चण सक्कई तहेव सद्दहणं ।
सद्दहमाणोजीवो भावदि अजरामरं थाणं।।

तो ऐसी द्यानतराय जी सेवा है।

91 वे रचनाएँ हैं। सभी के नाम तो नहीं सुना सकता लेकिन थोड़ा सुनो। उनकी एक रचना जो धर्मविलास में संग्रहित है उसका नाम है – द्रव्यसंग्रह पद्यानुवाद। शास्त्रों का शास्त्र। मेरा सबसे प्रियतम ग्रंथ है- द्रव्यसंग्रह। सोर्ट एण्ड स्वीट। द्रव्यसंग्रह को पढ़े बिना सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता। बच्चे-२ को पढ़ाने लायक ग्रंथ है। बनारसीदास जी की जो टीम है उसने द्रव्यसंग्रह को बहुत बढ़ावा दिया। समयसार की तरह ही अगर किसी ग्रंथ को महत्व दिया अगर किन्हीं विद्वानों ने तो वो है–द्रव्यसंग्रह। भगवतीदास जी भी द्रव्यसंग्रह खूब पढ़ाते थे। द्यानतराय जी ने भी द्रव्यसंग्रह का पद्यानुवाद किया। जयचंद जी छाबड़ा ने भी द्रव्यसंग्रह पढ़ाया। द्रव्यसंग्रह का तो छाबड़ा जी ने गद्यानुवाद भी किया। द्यानतराय जी की बहुत इम्पोर्टेन्ट रचना है। एक रचना है उपदेशशतक। उपदेशशतक रचना ऐसी है जैसे जैनशतक। उस जैनशतक का मैंने अनुवाद किया तो मैं चाहता था कि उपदेशशतक का अनुवाद करूँ लेकिन बहुत सरस ग्रंथ है उपदेशशतक। एक इन्होंने तत्त्वसार जो देवसेन आचार्य का ग्रंथ है आध्यात्मिक उसका पद्यानुवाद किया है। सबसे पहली चालीसा लिखी वो सबसे पहले द्यानतराय जी ने लिखी है। उसका नाम है श्रद्धाचालीसा। श्रद्धाचालीसा को आप पढोगे तो लगेगा मैं कोई फिलोसोफी का ग्रंथ पढ़ रहा हूँ। श्रद्धाचालीसा में यह चर्चा है कि जीव होता है या नहीं। क्या पंचभूत का नाम जीव है? जीव का अजीव से क्या संबंध है? श्रद्धाचालीसा भक्ति का ग्रंथ नहीं है। ये चालीसा भक्ति में कब कन्वर्ट हो गई ये हल्की भक्ति में वो पता नहीं लेकिन जो ओरिजिनल चालीसा पहले लिखी वो एक दर्शन का सुन्दर ग्रंथ है। जीव की अस्तित्व सिद्धि, जीव का स्वरूप, जीव के बारे में विपरीत मान्यताओं का निराकरण चालीस छंदों में किया और उसका नाम रखा श्रद्धाचालीसा। एक रचना लिखी-- अक्षरबावनी, दानबावनी, विवेकवीसी, सुखबत्तीसी, समाधिमरण, आरतीदशक। ये जो आरती घर घर में गाई जाती है–

**यह विधि मंगल आरतीकीजे, पंचपरमपद भजसुखलीजे… **

**क्या सुंदर आरती लिखी है। **

**एक रचना का नाम है-- अध्यात्मपच्चीसी। **

एक एकीभाव का पद्यानुवाद किया है।

स्वयंभू स्तोत्र का पद्यानुवाद किया है।

पार्श्वनाथ स्तोत्र।
यतीभावनाष्टक।
द्यानतराय जी का जन्म 1733 में हुआ। जब पन्द्रह साल के थे तब 1748 में इनका विवाह हो गया। 1777 में यानि 35 साल के थे तब इन्होंने सम्मेदशिखर, गिरनार, पावापुर आदि अनेक तीर्थों की वंदना की उससमय। एक साल खूब वंदना की उस जमाने में। 1780 में यानि पचास/50 वर्ष की अवस्था में धर्मविलास तैयार हुआ। 1784 में आगमविलास। छहढाला 1798 में लिखी। इसके बाद की कोई रचना नहीं मिलती है। इसलिए मुझे ये अनुमान लगता है कि ये 70 वर्ष के हो गए तो कम-से-कम 70 वर्ष के तो द्यानतराय जी थे ही थे। बाद में और कितना जिए और कितना इन्होंने काम किया। ऐसी बहुत सारी बातें हैं।

एक रचना लिखी है – व्यसनत्याग षोडशी।

सप्तव्यसनों का इतना सुन्दर वर्णन है आज के बच्चों को पढ़ाना चाहिए। बच्चे पूछते हैं कि शहद खाने में क्या दोष है?
एक दर्शनदशक लिखा है बहुत अच्छा। कुछ जिनवाणी संग्रहों में मिलता है।
धवला के एक श्लोक का पद्यानुवाद है।
देखे श्रीजिनराज आज सब विघन विलाए, देखे श्रीजिनराज आज सब मंगल छाए।

देखे श्रीजिनराज आज होंस पूरी मनमाहिं, चिन्तामणि पारस कल्पतरू मोहसबनिसों हट गया ।।

एक वैराग्य छत्तीसी लिखी है। षटगुणीहानिवृद्धि लिखी है। कोई ऐसा आदमी ढूँढो आप जो अध्यात्म में भी सुपर हो, आगम में भी सुपर हो और पूजा-पाठ आम जनता को समाने में भी सुपर-डुपर हो। पूरी जनता जिसको प्यार करती हो। जिसकी चीजें सारे विश्व गाई जाती हो, गुनगुनाईं जातीं हों ऐसे महापुरुष थे कविवर पण्डित द्यानतराय जी। इनका योगदान मानना चाहिए। इनपर हमको उत्सव मनाना चाहिए। आगम-अध्यात्म की मैत्री करने वाले विद्वान बहुत दुर्लभ होते हैं। समाधिमरण लिखा है। जनता को जोड़ा- तत्त्वज्ञान में लगाया ऐसे कविवर पण्डित द्यानतराय जी को हम सब पढ़ें, समझें धर्म के मार्ग पर लगें और दूसरों को लगाएँ इसी पवित्र भावना के साथ विराम लेता हूँ।

चर्चा के बाद–

सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कहा था तुम जैन भाईयों तुम्हारे पास वैभव बहुत है। तुम पूजापाठ करना चाहते हो, अपना वैभव नहीं सँभालते हो। आज द्यानतराय जी की कोई किताब छपाने को तैयार नहीं है। हम साहित्य को ठीक से छपाते नहीं और साहित्यकारों के पास, इतिहासकारों के पास, विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों के पास पहुँचाते नहीं। उन्होंने देखा ही नहीं वो कहाँ से लिखेंगे इतिहास ग्रंथों में, कोर्स में कहाँ से लगेंगी ये चीजें। ये चीजे कोर्स में भी नहीं आई, इतिहास में भी नहीं आईं उसका कारण है।
द्यानतराय ग्रन्थावली छपना चाहिए। ये सारी रचना डाल दो।
1000 ग्रंथ कॉपी विश्वविद्यालयों की लाइब्रेरी में, हर प्रोफेसर के पास पहुँचा दो आप दो साल बाद बताना कि इतिहास में आते हैं कि नहीं आते हैं। कोर्स में आते हैं कि नहीं आते हैं। जरूर आऐंगे। हमारे पास ही नहीं है। ज्ञानपीठ से छपाओ फिर देखो कमाल होगा। लोगों को मिलता ही नहीं। हीरा है लेकिन गुप्त है, लुप्त है तो लोगों को मिलता ही नहीं क्या करें। किसको दोष दें। हमीं सामने नहीं ला रहे हैं।
इसमें ज्यादा मान सम्मान नहीं मिलता। सालों में बनकर तैयार होती है। साहित्य साधना माँगती है।

भूधरदास ग्रन्थावली, बनारसीदास ग्रन्थावली, बुधजन, दीपचंद जी आदि इनका योगदान सामने आना चाहिए। ठोस काम करना चाहिए।
द्यानतविलास, चर्चाशतक, पदसंग्रह, छहढाला, मिला है। धर्मविलास में 45 रचना है उसी में श्रद्धाचालीसा है। सावरमती के आश्रम में प्रार्थना पुस्तिका में है ये भजन–
अब हम अमर भये ना मरेंगे।

आगमविलास, भेदविज्ञान नहीं मिला।
आज के समय में हम 40 लाख हैं बस। जिनशासन को बचाना चाहिए हमको।
इत्यलम्

आदरणीय वीरसागरजी भाईसाहब के प्रवचन से संकलित
जैन हीरोज सीरीज

6 Likes